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अल्फाज अनकहें से है , उन्हें परवाज़ देना बाक़ी है !अल्फाज अनकहें से है जो,नज़्मों में ढाल कर उन गीतो को गुनगुनाना है । लुका-छिपी खेलती ख़्वाहिशें नये सफ़र का आग़ाज़ कर रही है ।कुछ अल्फ़ाज़ अनकहें से है जो दिल के किसी कोने में दुबक कर बैठे है । छुप कर ज़िन्दगी से आँख -मिचौली खेलते है .उन अहसासों को लेकर कुछ ख़्वाब ,किसी की ख़्वाहिशें ,कुछ सपने कुछ हक़ीक़त ज़माने की , सबको साथ चलना है ..किसी रोज सुबह कभी शाम यूँ साथ- साथ ....
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Showing posts from February, 2019
MILUGI PHIR KISI ROZ ... मिलूँगी फिर किसी रोज
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ZINDGIII.... उलझी सी , सुलझी है ज़िन्दगी
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