एहसासों की धुरी पर


                   एहसासों की धुरी पर 

एहसासों की धुरी पर

 एहसासों की धुरी पर 
न जाहिर हुई तुमसे 
न बयाँ हुई हमसे 
कश्मकश ज़िन्दगी की 
बस ....
उलझी रही एहसासों की धुरी पर !! 
जैसे युगों से चाँद-सूरज , 
घूम रहे है इक -दूजे को , 
पाने की जुस्तजू में... 
धरती की धुरी में घूम रहे है !! 
क्या अंत होगा ... 
या विस्तार होगा ... 
इसी गतिशीलता का , 
स्वप्न बुनती .... 
जागती उसकी आँखों का , 
मिलेगा कभी उत्तर, 
हर ख़्याल के सौ-२ सवालों का , 
या हर सवाल में पिसते रहेंगे ,
बदहवास से कई ख़्याल .... 
हर उस ऋण से मुक्ति , 
मिलेगी कैसे .... 
जिन क़र्ज़ों पर कोई उधार नही , 
सतत् विचरते है ह्दय की धुरी पर , 
चिरकालिक कई विचार, 
क्या भला अब अंत होगा उसका , 
मन की गतिशीलता में , 
जो थम गया है जड़त्व बन ..... 
या अनवरत घुमते रहना है ताउम्र, 
हमें भी इन एहसासों की धुरी पर !! 
@रेणुका 





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