Shameful , शर्मनाक
#शर्मनाक
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#शर्मनाक
विरोध करने वालो का ताताँ लगा हुआ है । ग़ुस्सा उबल रहा है हर आँख में ,
बहुसंख्यक है लोग ,विरोध करने वाले ,
फ़ेसबुक पर , बाज़ारों और गलियों में ,
घटित होती है जब कोई घटना ,
ज़ोर -शोर से हर गली- गलियारा गूँजता है ,
हम सब एक हो खड़े
हाँ हम विरोधी है .... सब इस शर्मनाक हादसे के,
सारा देश इक-जुट हो तब होता है खड़ा
हर बहू - बेटी के मान के ख़ातिर ,
बस बातों मे , बस कुछ किताबों में ,
दिवारों -पोस्टर के चुभते नारों में ,
क़ानून लँगड़ा ,अन्धां और बहरा हो जाता है ,
मन्त्री , सन्तरी ,नेता सब आँखें मूँदे ,
राजनैतिक रोटियाँ सेकतें रहते है !
पड़ जाती है ठण्डी कुछ दिन बाद ...
ये उफनता क्रोध ,मन में धधकती ज्वाला ,
जब शांत हो जाता है माहौल तो ,
फुस्स हो जाती है सबके बदले की लो ,
अन्दर की फड़फड़ाती आग तो ,
कोर्ट- कचहरियों के चक्कर में ,
शर्म - बदनामी के चक्रव्यूह में ,
फिर दम तोड़ जाती है ... कोई बहू-बेटी,माँ,
फिर से दरिदगीं का तांडव खेला जाता है ,
फिर से हैवानियत नाम बदल कर सामने आती है ,
डर से , खुद की बहन बेटी के ख्याल भर से,
फिर ग़ुस्से की चिंगारी भड़क उठती है,
सोचा है कभी पूरे देश के आगे ,
कुछ मुठ्ठी-भर दरिंदे कैसे टिक पाते है ?
कैसे कुछ थोड़े कुंठित मानसिकता वाले ,
हर बार बच जाते है ?
कहाँ से , क्यूँ फिर से हैवानियत जन्म है लेती ?
हर बार नारी के साथ ही ऐसा क्यूँ ? सृजन-शक्ति का ही हर बार अपमान क्यूँ ?
क्या पुरूष के साथ ऐसा हुआ है
माना जिसको रक्षक , कभी उसका बलात्कार हुआ है ?
हममें , तुममें यहीं आस-पास की भीड़ में ही सभ्य मुखोटे लगा कर छुपे है ,
बिमार मानसिकता , घटिया ,
ज़लालत से भरी पाशविक सोच से भरे है ।
निर्भया ओर प्रियंका जैसी मासूम आत्माएँ ,
आर्तनाद कर रही हैं आसमान में,
नपुंसक क़ानून और समाज को झिंझोड़कर कर जगाना होगा ,
प्रताड़ना का प्रतिघात कर ,
दरिंदगी के कीचड़ को मिटाना होगा।
वहशियाना खेल को बन्द करने को , हाथ-पैर,आँख-नाक सरेआम कटवाने होगें ,
डाल गले में फंदा सरेआम फाँसी पर लटकाने होगे ।
इन नामर्दों को उनके वहशीपन की दरिन्दगीं के,
कठोर सबक़ सिखाने होगे ?
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