Chiraag , चराग़
चराग़ |
चराग़
# चराग़
चरागों को ... .मयस्यर नही , खुद की रोशनी भी,
जिगर तो देखो यारो इनका,बस दूसरों के लिये जला करते है।
इक इन्सान की ही फ़ितरत चरागों से कुछ यूँ है जुदा ,
भूल जाते है इन्सानियत , बस इक -दूसरे को देख ही जला करते है ।
सरफिरी हो जाये कितनी भी हवाऐं , परवाह नही करते ,
राही को मंज़िल तक पहुँचाने का दम ,फिर भी रखा करते है।
चराग हूँ मैं ... रोशनी फ़ितरत है मेरी ,गम के अन्घेरों से बेवफ़ाई किया करते है ,
मायूसियों की बेबस राहों में , उम्मीदों के चराग जलाया करते है ।
इश्क की दरो-दिवार हो या शजर का सूनापन , उस राह बसेरा करते है ,
जला तनहाईयों के आलम , उन्ही के रूकसारों को रोशन किया करते है ।।
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