वेदना मन की , PAIN IN HEART
Pain in Heart
देखना , इक दिन तोड़ रूढ़ियों का पिंजरा ,
दूर कहीं खुले आसमान में उड़ जाऊँगी !
फिर चाहे लाख बिछाना दामन बंदिशों के ,
फिर , हाथ कभी नही आऊँगी !
हाँ - ना अब डरूँगी , ना अब मरूँगी,
दूर कहीं आसमान में अपना जहाँ बसाऊँगी ,
जी हाँ - गर्व है मुझको ख़ुद पर मैं नारी हूँ !
वेदना मन की |
बाँध लो चाहे अब कितनी ही रस्मों में -झूठी क़समों में ,
हर ज़ंजीर तोड़ जाऊँगी ...
कभी कम नही थी... किसी से ,
ये जहाँ को अब दिखलाऊँगी ।
ना हारने दूँगी ख़ुद को , जुए में अब
ना होगी , कोई अग्नि परिक्षा कोई अब,
गर ना जागी ये दुनियाँ ...
ये सड़ी -गली रवायतों से ,
भरी ये दुनियाँ ...
तो ... दोधारी तलवार बन जाऊँगी
नारी हूँ मैं , कोई अभिशाप नही
रूह अपनी ओर लहू-लुहान ना करवाऊँगी !
ईक दिन तोड़ कर रूढ़ियों का हर पिंजरा
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