Mask *मुखौटा*


*मुखौटा* 





*मुखौटा* 


मुखौटे जब -जब भी सरक जाते हैं,
तो असली चेहरे सामने आ ही जाते है । 

हैरान होकर देखता है आइना मुझे यूँ रोज,
ढूँढ़ता है वो मेरे चेहरे में “मेरा “ चेहरा हर रोज । 

दुनिया की इस भीड़  में ,कहीं भी तुम जाओगे
हर तरफ, हर किसी को, बेहतर मुखौटे में ही पाओगे ।

बिकते हैं यहाँ  ....खुले आम मुखौटे ....और 
हर कोई पहन कर इन्हें  सबके मन को लुभाते  हैं । 

कहकहों में भी छुपा लेते है, फिर अश्कों के समुन्दर,
एक चेहरे फिर इक और नया चेहरा लगा लेते है । 

होती है आँखें जब सजल , बिखरा हो संताप चेहरे पर कभी , 
मौन की भी देहरी लाँघ जाये , टूट जाये जब रिश्तों के भी सारे समीकरण , 

जीवन-विवशता की सच्चाई को रख परे फिर , 
रोज सवेरे अपने चहरे पर एक मुखौटा चढ़ा लेते है । 
जीने को इस अनोखी दुनिया में, 
फिर से अपने कदम बढ़ा लेते है !!








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