GHAZAL , ग़ज़ल
# ग़ज़ल
ग़ज़ल |
वक़्त बेवक्त वो याद सा रोज़ ही
फ़लसफ़ा ऐसे बनता गया रोज़ ही।।
अब शिकायत कर भी तो किससे करें
तेरा ना आना बनता सज़ा रोज़ ही।।
रूबरू तो नही तू मिलता रोज ही
लफ्जों मे हूँ सजा लेता रोज ही।।
मेरे तस्वुर मे तेरा यूँ आना रोज ही
छूते ही दे जाता फिर दगा रोज ही ।।
तड़पता हूँ तेरे लिये मरता रोज ही
हुस्न वाले ने कहर बरपाया रोज ही ।।
करे जो वो महफ़िल में सजदा रोज ही
चेहरे पे तब्सुम है खिल जाता रोज ही ।।
चेहरे पे तब्सुम है खिल जाता रोज ही ।।
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