DARD ...ANKAHY SAY क्या ये इतना मुश्किल है ..
ये जो तुम्हारा स्वार्थ है जो सिर्फ़ देहमात्र है
किसी दिन मेरी जान लेकर छोड़ेगा या
फिर मैं तुम्हें मार डालूँगी।
फिर मैं तुम्हें मार डालूँगी।
एक दिन किसी दिन तुम्हारी उगंलिया ही काट दूँ तो ....
बस ये ही ख्याल बार -२ मन मस्तक में
हथौड़े के भातीं बजते रहते है ।
हथौड़े के भातीं बजते रहते है ।
सच में सिरदर्द बन चुके हो तुम ।
समझना ही नही चाहते ,
समझना ही नही चाहते ,
मेरी भावनाओं को ।
कैसे बदल जाता है रूप, मन तुम्हारा
कैसे बदल जाता है रूप, मन तुम्हारा
बिस्तर पर आते ही । केवल देहमात्र रह जाती हूँ ....
जिसे तुम जब चाहे जैसा चाहो रातभर घुमाते रहते हो ।
कोई परवाह नही मेरी कि क्या मुझे अच्छा भी लगता है ? “ तुम्हारा सिर्फ स्पर्श जिसमें अहसास की कोई गरमाहट नही “
लेकिन तुम्हें क्या ,
तुम तो बस सिर्फ़ अपनी प्यास बुझाना जानते हो ।
तुम तो बस सिर्फ़ अपनी प्यास बुझाना जानते हो ।
मेरा क्या जो मैं बरसो से प्यासी हूँ ।
तुम्हारी प्यास बुझाकर भी....
तुम्हारी प्यास बुझाकर भी....
मैं प्यासी हूँ ....
मन की प्यासी हूँ ....
बरसों से कई जन्मों से
मन की प्यासी हूँ ....
बरसों से कई जन्मों से
क्यूँ ,
क्यूँकि तुमने मुझे जानना ही नहीं चाहा ,
क्यूँकि तुमने मुझे जानना ही नहीं चाहा ,
तुम नही तो......
# कौन समझेगा मेरे दर्द को ।
# कौन समझेगा मेरे दर्द को ।
आज भी तरसती हूँ आग़ोश में तुम्हारे आने को ।
फिर खुद मे ही सिमट कर रह जाता है ....
फिर खुद मे ही सिमट कर रह जाता है ....
मचलता है बहुत मन लिपट जाऊँ तुमसे
और एक चैन की नींद ...
सकूं से.... सो जाऊँ
और एक चैन की नींद ...
सकूं से.... सो जाऊँ
तुम्हारी स्नेहिल बाहों में लेकिन ...
फिर से मन में एक नफ़रत ,
घबराहट , दर्द उठने लगता है ..
घबराहट , दर्द उठने लगता है ..
क्यूँ नही पा सकती
मैं एक सुखद अहसास तुम्हारे पास होने का।
क्यूँ नही है मेरे हिस्से में मेरी रात का अपनापन ।
क्यूँ सुलगती हूँ हर रात मैं
एक गीली लकड़ी की तरहा,
क्यूँ एक मन नही है तुम्हारे पास मेरी तरहा ......
जो सबके साथ कोमल एहसास चाहता है ।
इक अपनेपन का
इक अपनेपन का
अपना होने का स्पर्श चाहता है ।
मेरे जीवन का अहम् हिस्सा हो फिर .....
मेरे जीवन का अहम् हिस्सा हो फिर .....
क्यूँ तुम बस एक अनजान सा चेहरा लिये पास
आते हो ?
क्यूँ - नही “तुम समझ सकते हो
“मेरे मन की पीड़ा ?? मन के भावो को
ना समझना इक अभिशाप ही तो है !!
हाँ .... इक अभिशाप है !!
जीते रहते है # सब
पूरी ज़िन्दगी हम हमसफ़र बनके ।
एक ही छत्त के नीचे,
लेकिन प्रेयसी के # मन की थाह को नही
पूरी ज़िन्दगी हम हमसफ़र बनके ।
एक ही छत्त के नीचे,
लेकिन प्रेयसी के # मन की थाह को नही
पा सके पल भर भी ....
मन की ज़रूरतों ना समझ पाये ।
मन की ज़रूरतों ना समझ पाये ।
क्या चाहती है एक स्त्री ..
उसके मन की कोमल भावनाओं की क़द्र
हो उसे समझे कोई ।
क्या ये इतना मुश्किल है .. सच में क्या
एक पूरी ज़िन्दगी हम साथ गुज़ार सकते है ,
उम्र गुजर जाती हैं।
लेकिन ....
कुछ पल साथ बैठ कर हम
#जीवन साथी के
मन को नही पढ़ सकते ??
और
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