WHY....... क्यूँ हुई बड़ी

                                 क्यूँ हुई बड़ी 

                                          क्यूँ हुई बड़ी 

  माँ तेरी ये नन्ही चिड़िया 
    कब हुई बड़ी पता नही चला 
     माँ मैं क्यूँ हुई बड़ी ,
      क्यूँ हो गई तुमसे जुदा 
    तेरे आँगन में पली बड़ी मैं 
  चहकती थी महकती थी 
क्यूँ छीन लिया मेरा यें “जहाँ “
मैं तेरे आँगन की छोटी नन्ही चिड़िया ..
 कभी रिश्तों के बन्धन 
कभी रस्मों की मजबूरियाँ 
कभी इस दुनियाँ के दस्तूर 
क्यूँ ...
छीन लेते है इक मासूम हँसी 
माँ तेरी मैं नन्ही चिड़ियाँ ... 
ना जानू ज़माने की रवायतें 
ना समझ सकूँ वक़्त के दस्तूर 
बस मैं तो रहना चाहूँ ...
तेरी ममता की छाया में मग्न 
क्यूँ ये बेरहम वक़्त ..
छीन कर ले गया तेरी चिड़िया की चचहाहट ..
क्यूँ तोड़ दिये सपनों के सारे वो पंख 
जो उड़ने को दिये तूने , जीने को 
हँसने को मुस्कुराने को दिये तूने 
खो गई है ,तेरी चिड़ियाँ की वो मासूम हँसी ..
खो गई वो इस दुनियाँ की रवायतों में 
 चाहा था ....
     बहुत चाहा था ......


 दुनियाँ देखु दिये तेरे पंखों के साथ 
 उड़ूँ , चहचहाऊँ , लहराऊँ और ख़ुशियाँ बरसाऊँ 
पर जाने कहाँ खो गई तेरी नन्ही चिड़ियाँ 
  माँ .......
आजकल तुम बहुत याद आती हो ..
मेरी माँ ... 
मेरी प्यारी माँ .....
आजकल तुम बहुत याद आती हो ..
मुझे तेरे आचँल की वो छांव चाहिये 
वो प्यार चाहिये .. वो ही मेरा खुला आसमान चाहिये ...
इस दुनिया से जाने से पहले बस 
इक बार ..... बस इक बार माँ 
मुझे ढेर सारा प्यार चाहिये 
माँ ... मुझे फिर से तेरे आँचल की 
वो ठण्डी छांव चाहिये ...
     मुझे फिर से तेरे आँचल की 
              वो ठण्डी छांव चाहिये ...
माँ तेरी ये नन्ही चिड़ियाँ कब हुई बड़ी 
      पता ना चला .... 

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