ROOH ...MAY HO TUM रूह में हो तुम
# रूह में हो तुम
रूह में हो तुम .....
मैंने अभी कुछ लिखा ही नही ,
फिर कैसे तुम पढ़ लेते हो
मेरे अनकही बातों को ,मेरे धीरे -२
सरगोशी करते ख़्यालों को
सरगोशी करते ख़्यालों को
कैसे करते हो ..तुम ऐसा ?
जब लिपटते है ख्याल मेरे मुझसे
तुम धीरे से अधरों पर मेरे
अपनी प्यास रख ,
मिटा देते हो सारी विरह -अग्न
कैसे करते हो तुम .. ऐसा ?
होती हूँ जब विरह बेला में ..
बन ओंस की बूँदे मन -आँगन में
बिखर जाते हो ...
बन मोती मेरे आँसूओं में
झिलमिलाते हो ।
झिलमिलाते हो ।
बताओ ना .. ..
कैसे करते हो तुम ऐसा ?
प्रीत के धागें जब उलझे जब भी
कशमाकश की
ज़ंजीरों में ..
ओढ़ाकर कर प्यार की चुनरी
मेरी रूहे -मन्दिर में फिर
रोशन हो जाते हो
कैसे करते हो ...... तुम ऐसा ?
गर देखो कभी दर्दे -अश्क इन पलकों में ,
ले आग़ोश में अधरों के
“ सीप “ के जैसे बन जाते हो ..
“ सीप “ के जैसे बन जाते हो ..
कैसे करते हो ...... तुम ऐसा ?
अब तो बताओ ना ...??
सुनकर सब होले से वो मुस्कुराया
और कहा ...
और कहा ...
रूह है तुम्हारी मरियम जैसी ,
देखु जब भी “खुदा “सी लगती ...
ग़ज़ल हो तुम कोई , परियों जैसी
क्या करूँ मैं ब्यां क्या हो तुम ..
गीत हो कोई या शायद कोई रूबाई ,
या ... जैसे मस्ती हो , किसी फ़क़ीर की कोइ
है रोशन तुझी से सारी कायनात मेरी ,
तुझी से ही तो मेरी खुदाई है ....
नूर है तुममें उस खुदा का ,
जिसकी जग में आशनाई है
कैसे ना करूँ सजदा तेरा ....
“मैं भी तो तुझमें “और “तू मुझमें समाई है “
फिर क्यूँ ना करूँ मैं एसा ,
“ मेरी रूह में ही तू ,
बस तू ही तू समाई है “
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