SUI DHAGA # सुई - धागा


                              # सुई - धागा

सुई -धागे सी है ये ....

ज़िन्दगानी भी 

कुछ लिपटी हुई ,

धागों की मांनिद 

   कुछ सिमटी हुई सी ,

सहमी हुई सी ,

ख़ौफ़ज़दा हो जैसे ... 

सुई के जैसे चुभते झूठे , 

रस्मों के बन्धन 

 बन के नश्तर, 

 चुभ जाते है जीवन में  

दिया था आस का,

 सुई -धागा तुमने ....

           
टाँकने को सितारे , 

 उससे मैंने अपनी ,

उदासी की चादर टाँक ली ,  

              और   
   पिरो दी है अपने ,

    टूटे ख़्वाबों की लड़ियाँ  

      उधड़ी सी फटी. .  . 

      ज़िन्दगी के उलझे  तारो के ,              ताने -बाने सिलते -सिलते 
  यूँ ही .......


                    जाने कब  , 

                         सो गई मैं हाथ में  सुई धागा लिये ......


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