SURKH KHABb... # सुर्ख़ ख़्वाब
# सुर्ख़ ख़्वाब
# सुर्ख़ ख़्वाब
यादें ,
जैसे गरम चाय का ,
उठता धुआँ !
एक के बाद एक आती है,
फिर से चली आती है।
करती है कानों में ,
मीठी सी सरगोशियाँ !
सरसरहट नर्म से पत्तों की ,
दिल के दरवाज़े ,
खोल जाती है फिर से
जाने कहाँ से ॰॰॰॰
इक भूला सा लम्हा आकर
होंठों को सहला जाता है ,
होले से गुदगुदा जाता है !
आँखों में इक चमक ,
शरारत की सी....
शर्मो -हया के परदे में
फिर इक ख़्वाब ,
आँख -मिचौली खेलता है ।
फिर से हाँ.....
फिर से ........
'' इक सुर्ख़ सा अहसास मेरे अन्दर पलता है ''
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