ZINDGIII.... उलझी सी , सुलझी है ज़िन्दगी
उलझी सी , सुलझी है ज़िन्दगी
कुछ सूखी सी ,कुछ गीली सी है ज़िन्दगी
कुछ उलझी है कुछ सुलझी सी है ज़िन्दगी ...
उलझी है फिर भी सुलझी है ज़िन्दगी
धीमे -धीमे नदी सी चूमकर पत्थरों की पेशानी पर लहराती सी बलखाती सी बहती है .. ज़िन्दगी
ख्वाहिशो के महल में रहती है,
मायूस होकर कभी ..
पल -२ रेत सी बिखर जाती है ,
कभी -२ ये ज़िन्दगी ...
कभी इसमें नहीं रहता चैन और नींद भी उड़ जाती है।
है अगर प्यार की किरण तो खुशी के उजालों से भर जाती है
जिन्दगी ....
गिरती -संभलती मुश्किलों से उलझती आगे बढ़ती जाती है ज़िन्दगी ....
फिर भी वक़्त के दामन से नज़रें चुरा कर भी #मुस्कुराती है ज़िन्दगी ...
उलझी है फिर भी ,सुलझी सी
खिलखिलाती है ज़िन्दगी ।
कुछ सूखी सी ,कुछ गीली सी है ज़िन्दगी
कुछ उलझी है तो भी कुछ सुलझी सी है ज़िन्दगी ।।
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